मिल्खा सिंह फ्लाइंग सिख कहे जाने वाले मिल्खा सिंह का 18 जून 2021 की रात निधन हो गया।
मिल्खा सिंह ने करोड़ों भारतीय लोगों को अपने जीवन काल से प्रेरणा दी है।
19 मई की शाम को मिल्खा सिंह कोरोना पॉजिटिव आई | तत्पश्चात 24 मई को ऑक्सीजन की कमी से तथा निमोनिया होने पर फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। 26 मई को मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर कोई भी कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आई। 13 जून को कोरोना की वजह से पत्नी निर्मल कौर का निधन हो गया। 18 जून को बुखार की वजह से हालत काफी नाजुक हो गई थी | रात्रि 11:4 बजे देश ने अपना एक सितारा खो दिया।
जीवन काल –
- जन्म- 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुर ग्राम में हुआ था।
- पत्नी – निर्मल कौर ( भारतीय बास्केटबॉल टीम की कप्तान)
- निधन – 18 जून 2021
- भारत पाकिस्तान विभाजन भारत आ गए थे,और विभाजन के दंगों में माता पिता को खो दिया।
सैन्य कालीन जीवन-
मिल्खा सिंह भारतीय सेना में तीन विफलता के बाद प्रवेश मिला | तथा सेना से ही बने खुद के धावक पता चला।
सेना में क्रॉस कंट्री दौड़ में हिस्सा के कर 400 से अधिक धावकों में 6 वे नंबर पर आ कर सबका ध्यान खींचा।
प्रतियोगिता और उपलब्धियां-
- 1956 – मेलबोर्न में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
- 1958 –एशियाई खेलों में 200 मीटर व 400 मी में स्वर्ण पदक जीते ।
- 1958 – राष्ट्रमण्डल खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त किया ।
- इसी साल एशियाई खेलों की 200मीटर ,400 मीटर रेस में स्वर्ण पदक जीते ।
- 1962 –एशियाई खेलों की 400 मीटर दौड़ और 4*400 रिले रेस में स्वर्ण पदक जीते।
- 1964- के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में द्वितीय स्थान प्राप्त किया ।
- 1960 – रोम ओलंपिक में 400 मीटर में 0.1 सेकंड के अंतर से रह कर 4 वां स्थान प्राप्त किया , रोम में पदक ना जितने का मलाल उनको हमेशा था।
फ्लाइंग सिख –
- 1960 में पाकिस्तान ने मिल्खा सिंह को दौड़ के लिए आमंत्रित किया,परन्तु विभाजन की यादों के कारण वे जाना नही चाहते थे।
- फिर देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आग्रह करने पर वो पाकिस्तान गये थे।
- पाकिस्तान के धावक अब्दुल खिलीद को हरा दिया था।
- पाकिस्तान के राष्ट्रपति आयूब खां ने कहा कि ” आप आज दौड़े नही है, बल्कि आप आज उड़े है” तथा मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख नाम की उपाधि दी।
सम्मान –
1958- मिल्खा सिंह को भारत सरकार ने पद्मश्री ने नवाजा गया।
वो एकमात्र ऐसे धावक है जिन्होंने 80 दौड़ में से 77 दौड़ में जीत प्राप्त की थी ।
मिल्खा सिंह का सपना था कि जो वो रोम ओलंपिक में पदक नही जीत पाए थे, कोई भारतीय ओलंपिक में पदक जीते ।
उनका जीत का जज्बा देश के युवाओं को युगों युगों तक प्रेरित करता रहेगा।
मूल लेखक– राम नारायण विश्नोई
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